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मेरा नाम संजय गुप्ता है। मैं यॉर्क में एक कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट हूं और आज का वीडियो हार्ट स्टेंटस या इंट्रा-कोरोनरी स्टेंट के विषय पर है। इस वीडियो में मैं बात करूंगा कि स्टेंट क्या हैं, उनका उपयोग क्यों किया जाता है और उनके लगाने से क्या लाभ और जोखिम जुड़े हैं।
समझने वाली पहली बात यह है कि हम में से अधिकांश में, जैसे-जैसे हमारी उम्र बढती है हमारे स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम होता है दिल की धमनियों में धीरे-धीरे टूट-फूट होना और इस में दो समस्याएं हैं। पहला यह है कि जैसे-जैसे टूट-फूट बढ़ती है, दिल की धमनियों के कुछ हिस्सों का धीरे-धीरे संकुचित होना शुरू हो जाता है। जिसका अर्थ है कि खून के लिए उस स्थान तक पहुंचना अधिक कठिन हो जाता है जहां बढ़ती मांग के समय इसकी जरूरत होती है और इसलिए उन मांसपेशियों की कोशिकाओं, जिन्हें इस बढ़ी हुई मात्रा में खून की आवश्यकता होती है, का दम घुट जाएगा और फिर छाती में बेचैनी या सांस फूलने के लक्षण प्रकट होते है। इसे स्थिर एनजाइना कहा जाता है। जब संकुचन के कारण खून दिल की मांगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त तेज़ी से नहीं पहुंच पाता है, तो यह सांस लेने में तकलीफ और काम करने पर सीने में तकलीफ का कारण बनता है जिसे स्थिर एनजाइना के रूप में जाना जाता है। जो की एक समस्या है।
ब्लड वेसल्स में टूट-फूट के साथ दूसरी समस्या यह है कि ब्लड वेसल में ब्लड क्लॉट बनने की संभावना अधिक हो जाती है। और जब एक ब्लड क्लॉट बनता है तो यह वाहिका को बंद कर सकता है जिससे दिल की मांसपेशियों का तीव्र घुटन हो सकता है। इसे अस्थिर एनजाइना या दिल का दौरा कहा जाता है। तो, स्थिर एनजाइना के साथ जो होता है वह यह है कि जब आप बैठे होते हैं तो आप ठीक होते हैं लेकिन अगर आप दिल पर बोझ बढ़ाते हैं तो सप्लाई मांग से मेल नहीं खाती है और यहीं आपको सीने में तकलीफ होती है। और छाती में यह बेचैनी काम करने पर होती है। ब्लड क्लॉट के साथ क्या होता है कि आपको कोई चेतावनी नहीं मिलती है और आप अपने काम को करते हुए नार्मल महसूस करते हो लेकिन फिर एक दिन जब आप बैठे होते हैं एक ब्लड क्लॉट बन सकता है और वह ब्लड क्लॉट ब्लड वेसल को बंद कर सकता है और इसके कारण अचानक दिल का दौरा या एनजाइना हो सकता है। और वे दोनों समस्याएं हैं जो ब्लड वेसल्स में इस टूट-फूट के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती हैं।
अब पुराने दिनों में जब रोगी को उनकी ब्लड वेसल्स में संकुचन होता था और एनजाइना की शिकायत होती थी तो इस एनजाइना का इलाज करने का एकमात्र तरीका या तो दवाएं थी या ओपन हार्ट सर्जरी, और ये दवाएं दिल की मांग को कम करने में सक्षम थीं या इन ब्लड वेसल्स को क्षणिक रूप से खोलती थीं, जिससे लक्षणों से तो राहत मिलती थी, पर दवाएं वास्तव में संकुचन को ठीक नहीं करती थीं। संकुचन रह ही जाती थी। सभी दवाएं दिल को धीमा करती थीं ताकि दिल ज्यादा खून नहीं मांगे या यहां तक कि ब्लड वेसल्स को थोड़ा सा खोल देती थी ताकि खून निकल सके। लेकिन ब्लड वेसल्स तब तक खुली रहती थी जब तक की दवाइयों का असर रहता था और फिर यह फिर से बंद हो जाया करती थी।
तो, वास्तव में समस्या को ठीक करने का एकमात्र कारगर विकल्प सर्जरी था। जो जनरल एनेस्थीसिया में छाती को खोल कर किया जाता था और यह एक बड़ा काम है। इसमें सर्जन को पैर से एक ब्लड वेसल लेनी होगी और फिर उसे संकरी ब्लड वेसल के दोनों ओर जोड़ देना होगा ताकि संकुचन को बायपास किया जा सके। समस्या यह थी कि हर मरीज सर्जरी कराने के लिए पर्याप्त रूप से फिट नहीं होता। और एक समस्या यह भी थी कि संकुचन ऐसी ब्लड वेसल में हो जिसमे सर्जन बाईपास सिलाई करने में सक्षम हो। यदि ब्लड वेसल बहुत छोटी होती तो उस ब्लड वेसल को बायपास करना संभव नहीं होता। और इन सीमाओं को देखते हुए वैज्ञानिकों को यह देखने में अधिक दिलचस्पी हो गई कि क्या ओपन हार्ट सर्जरी के बिना संकुचित ब्लड वेसल्स तक पहुंचने का कोई तरीका है।
और सफलता 1953 में मिली, जब एक स्वीडिश रेडियोलॉजिस्ट डॉ. सेल्डिंगर ने सेल्डिंगर तकनीक के रूप में जानी जाने वाली एक तकनीक विकसित की, जिसने वास्तव में छाती को काटे बिना बाहर से आंतरिक ब्लड वेसल्स तक पहुंचना संभव बना दिया। और उन्होंने जो किया वह यह था कि क्योंकि हम धमनियों को महसूस कर सकते हैं, प्रत्येक धमनी दिल के साथ संचार में होती है, इसलिए यदि आप एक ऐसी धमनी को पंचर करते हैं जो बाहरी रूप से स्पर्श करने योग्य हैं, आप उन्हें अपनी कलाई में या अपनी कमर में महसूस कर सकते हैं, तो आप एक सुई के माध्यम से एक पतली तार को इस धमनी में डाल सकते हैं और एक्स-रे गाइडेंस की मदद से इस तार को धमनी से दिल तक ले जा सकते हैं। यदि आप ट्यूब को तार पर स्लाइड करें और तार को हटा दे फिर उसके बाद आप रेडियो ओपेक डाई को ब्लड वेसल्स में और वास्तव में दिल की ब्लड वेसल्स में इंजेक्ट कर सकते हैं। क्योंकि अगर आप वास्तव में काफी दूर तक जाते हैं तो अंत में हर धमनी दिल तक ले जाएगी और आप दिल की धमनियों तक पहुंच सकते हैं। और फिर आप इन ब्लड वेसल्स में रेडियो ओपेक डाई इंजेक्ट कर सकते हैं और एक्स-रे ले सकते हैं और इस तरह से आप संकुचन के स्थान की पहचान कर सकते हैं जो रोगी को समस्या पैदा कर रहे थे।
बाहर से अंदर जाने और दिल की धमनियों में डाई डालने की प्रक्रिया के द्वारा यह देखना कि समस्या कहां है कोरोनरी एंजियोग्राफी कहलाती है। और एक बार जब डॉक्टर एंजियोग्राफी के अभ्यास से सहज हो गए, तो अगली चुनौती और लक्ष्य संकुचन को खोलने के लिए किसी प्रकार के उपचार देने के लिए उसी पद्धति का उपयोग करने का एक तरीका डेवलप करना था। और 1977 में डॉ. एंड्रियास ग्रुन्ज़िग नामक एक जर्मन कार्डियोलॉजिस्ट पहली एंजियोप्लास्टी करने में सक्षम हुए, जहां वे संकुचन तक पहुंचने में सक्षम थे और फिर कैथेटर के अंत में एक गुब्बारे का उपयोग करते थे। वह एक तार के साथ संकुचन तक पहुंच गए और वो एक्स-रे पर देख सकते थे कि वह उस संकुचन तक पहुंच गए, और फिर वह इस तार पर एक गुब्बारा स्लाइड करके संकुचन में गुब्बारे को फुलायेंगे और तब परिणाम यह होगा की संकुंचन बहुत ही प्रभावी तरह से से खुल जायेगा। यह स्पष्ट रूप से एक बड़ी सफलता थी और डॉक्टरों ने इस तकनीक में अनुभव और विशेषज्ञता विकसित करना शुरू कर दिया जिसे बैलून एंजियोप्लास्टी कहा जाता था।
जैसे-जैसे अधिक प्रक्रियाएं की गईं और दीर्घकालिक परिणामों पर रिसर्च उपलब्ध होना शुरू हुआ, यह स्पष्ट हो गया कि 30 परसेंट तक रोगियों में उन ब्लड वेसल के भीतर फिर से संकुचन हो जायेगा, जिनमे बैलून एंजियोप्लास्टी हुयी थी। और इसलिए उन्हें यह दोबारा करने की जरूरत होती थी। और यह तीन कारकों के कारण माना जाता था। एक बार संकुचन को खोलने के बाद इसकी पुनरावृत्ति के तीन कारक थे। पहला यह था कि संकुचन वाले भाग को आप फैलाते हैं और फिर रेकॉइल के कारन और इससे फीर से संकुचन हो जाता है। इसके आलावा नेगटिव रीमॉडेलिंग होता है जिसमे तो जो थोड़ा सा आप फैलाएंगे रीमॉडेलिंग के कारण बदल जाएगा और संकुचन फिर से आ जायेगा। और फिर संकुचन वाले हिस्से के भीतर टिश्यू डेवलप करने की संभावना भी थी।
और इस पर सुधार करने के लिए, वैज्ञानिकों को एक स्टेंट, एक धातु स्टेंट विकसित करने के विचार आया, जिसे संकुचन के भीतर प्रत्यारोपित किया जा सकता था और यह वाहिका को खुला रखेगा और यह इलास्टिक रीकॉइल की संभावनाओं को कम करके रीस्टेनोसिस के जोखिम को कम करेगा, क्योंकि यदि आपके पास एक धातु का स्टेंट है, जो उसे खुला रखता है और नेगेटिव रीमॉडेलिंग भी करता है तो ब्लड वेसल रीकॉइल नहीं कर सकती थी।
हालांकि, स्टेंट के भीतर टिश्यू डेवलप अभी भी संभवथा और इसीलिए पहली पीढ़ी के इंट्रा-कोरोनरी स्टेंट का डेवलपमेंट हुआ। इन्हें अब बेयर मेटल स्टेंट कहा जाता है और यह नोट किया गया कि वास्तव में बेयर मेटल स्टेंट स्टेनोसिस के जोखिम को कम करने के मामले में बैलून एंजियोप्लास्टी से दोगुने प्रभावी थे।
मैं आपको एक स्टेंट दिखाता हूं। मुझे यह मिल गया यह एक स्टेंट जैसा दिखता है। चलिए मैं आपको अभी दिखाता हूँ। मुझे यकीन नहीं है कि यह वीडियो पर स्पष्ट रूप से दिखाई देगा या नहीं। लेकिन यह वह तार है जो रोगी में जाता है। ठीक है, तो यह ब्लड वेसल को दिल तक जाता है और यहाँ स्टेंट है। क्या आप देख सकते हैं? यहाँ स्टेंट है।
बस वहाँ। और मैं इसे हिला सकता हूं।
क्या आप देख सकते हैं? तो हम इसी के बारे में बात कर रहे हैं। यह है एक छोटा मेटल स्टेंट। मैं कुछ नज़दीकी तस्वीरें लेने की कोशिश करूँगा और उन्हें पोस्ट करूँगा लेकिन यह वह स्टेंट है जो दिल की धमनियों में जाता है। यह एक गुब्बारे पर सवार है। तो आप क्या करेंगे कि आप इस चीज को संकुचित हिस्से में डाल देंगे और गुब्बारे को फुला देंगे, स्टेंट का विस्तार होगा और फिर आप गुब्बारे को छोटा करेंगे लेकिन स्टेंट वहीं रहता है और उस ब्लड वेसल को खुला रखता है। तो हम इसी के बारे में बात कर रहे हैं। ये बहुत ही छोटे हैं। आप समझ सकते हैं।
वैसे भी, उन्होंने पाया कि जब आप स्टेंट लगाते हैं, तो यह संकुचन के दोबारा आने या रीस्टेनोसिस के जोखिम को कम करने के मामले में बैलून एंजियोप्लास्टी से दोगुना प्रभावी होते हैं।
हालांकि, इस सुधार के बावजूद, स्टेंट के भीतर टिश्यू डेवलप होने के कारण 15 परसेंट रोगियों में अभी भी एक वर्ष के भीतर रीस्टेनोसिस हो जाएगा। तो, आप जानते हैं कि आप स्टेंट डालते हैं, जो रीकॉइल को रोकता है लेकिन आप अभी भी स्टेंट के भीतर नए टिश्यू डेवलप कर सकते हैं और यह हिस्सा फिर से संकुचित हो सकता है। इसे ही रीस्टेनोसिस कहा गया। इंस्टेंट री-स्टेनोसिस पहले की तुलना में बहुत बेहतर है जब आपके पास स्टेंट नहीं था लेकिन फिर भी आप इसे ले सकते थे
इंस्टेंट स्टेनोसिस के जोखिम को कम करने के लिए वैज्ञानिकों ने पाया कि यदि वे स्टेंट को किसी प्रकार की दवा के साथ कवर कर सकते हैं जो 2 से 12 सप्ताह के बीच कुछ महीनों में रिलीज़ हो तो यह स्टेंट के भीतर सेल्स के प्रसार को कम कर सकता है और इससे रीस्टेनोसिस का खतरा कम हो जाएगा। और इसके बाद उस चीज का विकास हुआ जिसे अब ड्रग एलुटिंग स्टेंट के रूप में जाना जाता है। और ये स्टेंट एक प्रकार के एंटीबायोटिक और एक एंटी-प्रोलिफ़ेरेटिव एजेंट के साथ लेपित होते हैं जो तब स्टेंट के लुमेन के भीतर नए विकास को रोकता है।
जबकि ये स्टेंट असामान्य टिश्यू के नए विकास को रोकने में काफी अधिक प्रभावी थे और इसलिए स्टेनोसिस के जोखिम को 50 प्रतिशत तक कम कर देते थे, समस्या यह थी कि वे इतने अच्छे थे कि वे रोगी के सामान्य टिश्यू को स्टेंट को एम्बेड करने की अनुमति नहीं देते थे और इसलिए स्टेंट की बाहरी सतह का एक महत्वपूर्ण हिस्सा खुला रह गया और इसने एक ऐसी सतह के रूप में काम किया जहां ब्लड क्लॉट जम सकता था और यह स्पष्ट हो गया कि स्टेंट की इस खुली सतह पर अचानक ब्लड क्लॉट बनने का काफी अधिक जोखिम था। और वह तब स्टेंट को बंद कर देता था और इसे लेट स्टेंट थ्रॉम्बोसिस कहा जाता था। और लेट स्टेंट थ्रॉम्बोसिस एक संभावित विनाशकारी कम्पलीकेशन है क्योंकि रोगी एक मिनट में बिना किसी लक्षण के होता है और फिर अचानक से स्टेंट अवरुद्ध हो जाता है और रोगी को एक बड़ा दिल का दौरा पड़ता है।
प्रगति के साथ स्टेंट डिजाइन बहुत अधिक परिष्कृत हो गए हैं और अब स्टेंट थ्रॉम्बोसिस एक असामान्य समस्या है। यह अभी भी एक संभावित रूप से बहुत खतरनाक कम्पलीकेशन है, जबकि स्टेंट थ्रोम्बिसिस की प्रसार एक से दो प्रतिशत है। एक्यूट स्टेंट थ्रॉम्बोसिस में मृत्यु दर 20 से 40 प्रतिशत तक हो सकती है।
और यही कारण है कि यह रीकोमेंड किया जाता है कि स्टेंटिंग प्रक्रिया के बाद रोगियों को ऐसी दवाएं लेनी चाहिए जो थ्रोम्बोसिस के जोखिम को कम करती हैं, जो पहले वर्ष में महत्वपूर्ण प्रतीत होती है और शायद पहले छह महीनों में सबसे बड़ी है। जिन दवाओं की सिफारिश की जाती है, वे आम तौर पर दो एंटीप्लेटलेट एजेंटों का कॉम्बिनेशन होते हैं, जिनमें से एक एस्पिरिन होता है और फिर दूसरा एक अन्य एंटी-प्लेटलेट या तो क्लोपिडोग्रेल, टिकाग्रेलर या प्रासिक्रल होता है। और जबकि कई वर्षों से हमने एस्पिरिन के अलावा क्लोपिडोग्रेल को दूसरे एजेंट के रूप में इस्तेमाल किया है, इसका उपयोग विशेष रूप से उन लोगों में किया जाता है जिन्हें टिकाग्रेलर या प्रासिक्रल के बाद भी हाल ही में दिल का दौरा पड़ा है। और आमतौर पर यह सिफारिश की जाती है कि इन दवाओं को स्टेंट लगाने के बाद पूरे एक साल तक एस्पिरिन के साथ कॉम्बिनेशन में जारी रखा जाए।
दो एंटीप्लेटलेट एजेंटों को लेने में समस्या ब्लीडिंग का बढ़ा हुआ जोखिम है, लेकिन यह महसूस किया जाता है कि अधिकांश रोगियों में ब्लड क्लॉट का जोखिम विशेष रूप से पहले वर्ष के भीतर ब्लीडिंग के जोखिम से अधिक होता है। वर्ष के अंत तक स्टेंट थ्रॉम्बोसिस का जोखिम शायद इस हद तक गिर जाता है कि ब्लीडिंग के जोखिम को थ्रोम्बोसिस के जोखिम से अधिक माना जाता है और इसलिए दूसरा एंटीप्लेटलेट आमतौर पर वर्ष के अंत तक बंद कर दिया जाता है। हालांकि यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम जो कुछ भी सुझाते हैं, वह स्टेंट के बंद होने के जोखिम को कम करने पर आधारित है। दो एजेंटों के कॉम्बिनेशन में एक और फायदा है और वह यह है कि वे बिना स्टंट वाले वाहिकाओं में भी ब्लड क्लॉट के बनने के जोखिम को भी कम करते हैं।
और इसलिए स्टेंट को बंद होने से रोकने के अलावा, वे और दिल के दौरे और गैर-स्टेंट वाले वाहिकाओं के जोखिम को भी कम कर सकते हैं। यह माना जाता है कि ऐसे रोगियों का एक ग्रुप है जो जिनमें दिल के दौरे का सबसे अधिक जोखिम हैं और वो हैं डायबिटीज रोगी जिन्हें गुर्दे की बीमारी, पेरिफेरल वैस्कुलर डिजीज है और जिन्हें एक से अधिक कोरोनरी धमनी में बीमारी है। पेगासस टिम्मी 54 नामक एक स्टडी था जिसने सुझाव दिया कि इन रोगियों में उनके इंडेक्स हार्ट अटैक के बाद एक से तीन साल तक कम खुराक दो एंटीप्लेटलेट्स का कॉम्बीनेशन जारी रखना बेहतर है। कुछ और स्टडीज हुए जिनमे उन रोगियों में स्टेंट ब्लॉकेज के जोखिम का की स्टडी हुयी जिन्होंने समय से पहले दूसरा एंटी-प्लेटलेट बंद कर दिया है और हमने देखा कि पहले महीने में क्लॉपिडोग्रेल बंद करने वाले 25 प्रतिशत से अधिक रोगियों को स्टेंट थ्रोम्बिसिस का सामना करना पड़ेगा। क्लॉपिडोग्रेल का समय से पहले रोकने से स्टेंट थ्रॉम्बोसिस का जोखिम 30 गुना बढ़ जाता है। 500 रोगियों के एक विशेष स्टडी में यह पाया गया कि 7.5 प्रतिशत रोगियों की मृत्यु हो गयी अगर उन्होंने दूसरे एजेंट को पहले 11 महीनों के अन्दर छोड़ दिया जबकि उनकी तुलना में सिर्फ 0.7 परसेंट की जिन्होंने नहीं छोड़ा। सारांश में, स्टेंट ने दिल की धमनी के संकुचन और रुकावटों का इलाज में क्रांतिकारी बदलाव किया है। उन्होंने ओपन हार्ट सर्जरी पर हमारी निर्भरता को स्पष्ट रूप से कम कर दिया है जो वास्तव में पिचले सदी में दवाइयों के अलावा एकमात्र विकल्प था।
स्टेंट की वैसे तो अपनी समस्याएं हैं और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि वे एक बाहरी वस्तु हैं और इसलिए बंद हो सकती हैं। और इस लिए एक स्वस्थ जीवन शैली और दो एंटीप्लेटलेट दवाएं, जिन्हें आमतौर पर स्टेंटिंग के बाद कम से कम एक साल तक के लिए रीकोमेंड किया जाता है, का नियमित इस्तेमाल महत्वपूर्ण है।
इसलिए मुझे आशा है कि आपको यह उपयोगी लगा होगा और मुझे आपके विचार सुनना अच्छा लगेगा और मैं आपको शुभकामनाएं देता हूं। ध्यान रक्खे।
आपको धन्यवाद
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